Veervar vrat katha

  1. Guruvar Vrata Kathayen
  2. बृहस्पतिवार व्रत कथा
  3. [PDF] वीरवार की व्रत कथा
  4. veervar ki vrat katha Archives
  5. VEERVAR VRAT KATHA / SAPTVAR VRAT KATHA AUR AARTI


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Guruvar Vrata Kathayen

बृहस्पतिवार/गुरुवार व्रत पूजा विधि / Process of Thursday Fast ( Veervar Vrat Vidhi) बृहस्पतिवार को जो स्त्री-पुरुष व्रत करें उनको चाहिए कि वह दिन में एक ही समय भोजन करें | क्योंकि बृहस्पतेश्वर भगवान का इस दिन पूजन होता है भोजन पीले चने की दाल, पीले मीठे चावल, बेसन के बने मीठे व्यंजन आदि का करें परन्तु नमक नहीं खावें और पीले वस्त्र पहनें, पीले ही फलों का प्रयोग करें, पीले चन्दन से पूजन करें, पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए। इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं और बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं तथा धन, पुत्र विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक, सब स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले के वृक्ष का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय तन, मन, क्रम, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो उसे मन में रखते हुए बृहस्पतिदेव की प्रार्थना करनी चाहिए। उनकी इच्छाओं को बृहस्पतिदेव अवश्य पूर्ण करेंगे ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए। व्रत कथा / Story of Thursday Fast in Hindi (Veervar Vrat Katha) भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा- हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हू...

बृहस्पतिवार व्रत कथा

बृहस्पतिवार व्रत कथा | गुरुवार व्रत कथा Brihaspati Vrat Katha | Guruvar Vrat Katha in Hindi प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी। एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती। बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं। तब बृहस्पतिदेव बोले “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए। व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे...

[PDF] वीरवार की व्रत कथा

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बृहस्पति व्रत (Thursday Fast) का महात्म्य एवं विधि-विधान, व्रत कथा देव गुरु बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) जी विद्या, बुद्धि, धन-वैभव, मान सम्मान, यश-पद और पुत्र-पोत्र प्रदाता, अत्यंत दयालु देवता है। नव ग्रहों में सबसे बड़े और शक्तिशाली तथा देवताओं के गुरु होने के नाते बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) के निमित्त व्रत और पूजा करने पर अन्य सभी ग्रह और देवता भी हम पर कृपालु बने रहते हैं। इनका वाहन हाथी है और हाथों में शंख एवं पुस्तक के साथ-साथ त्रिशूल भी धारण करते हैं। देव गुरु बृहस्पति जी के शरीर का रंग सोने जैसा पीला है और पीले वस्त्र एवं भरपूर स्वर्ण आभूषण धारण करते हैं। इनके पूजन में पीले फूलों, हल्दी में रंगे हुए चावल, रोली के स्थान पर पीसी हुई हल्दी और प्रसाद के रूप में पानी में भीगी हुई चने की दाल अथवा बेसन के लड्डूओं का प्रयोग किया जाता है। व्रत करने वाले साधक को भी पीले वस्त्र तथा पीली वस्तुओं का प्रयोग तथा पीला भोजन ही करना चाहिए। बृहस्पति व्रत विधि | Brihaspati Vrat Vidhi यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) गुरुवार (Guruvar) से आरंभ करें। तीन वर्षपर्यन्त या 16 व्रत करें। उस दिन पीतवस्त्र धारण करके बीज मंत्र की 11 या 3 माला जप करें। पीतपुष्पों से पूजन अर्घ्य दानादि के बाद भोजन में चने के बेसन की घी-खाण्ड से बनी मिठाई, लड्डू या हल्दी से पीले या केसरी चावल आदि ही खाएं और इन्हीं का दान करें। बृहस्पतिवार (Brihaspativar | Guruvar Vrat) के व्रत के दिन अपने मस्तक में हल्दी का तिलक करें। हल्दी में रंगे चावलों अथवा चने की दाल की वेदी बनाकर और उस पर रेशमी पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति देव की प्रतिमा अथवा बृहस्पति ग्रह के यंत्र को स्वर्णपत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित ...

VEERVAR VRAT KATHA / SAPTVAR VRAT KATHA AUR AARTI

बृहस्पतिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस व्रत से धन संपत्ति की प्राप्ति होती है. जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख-शांति बढ़ती है. जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, उनका जल्दी ही विवाह हो जाता है. ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. बुद्धि और शक्ति का वरदान प्राप्त होता है और दोष दूर होता है व्रत के दौरान पुरे दिन उपवास रखा जाता है. दिन में एक बार सूर्य ढलने के बाद भोजन किया जा सकता है. भोजन में पीली वस्तुएं खाएं तो बेहतर. लेकिन गलती से भी नमक का इस्तेमाल ना करें. प्रसाद के रूप में केला को अत्यंत शुभ माना जाता है. लेकिन व्रत रखने वाले को इस दिन केला नहीं खाना चाहिए. केला को दान में दे दें. पूजा के बाद बृहस्पति देव की कथा सुनना आवश्यक है. कहते हैं बिना कथा सुने व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जाता और उसका पूर्ण फल नहीं मिलता. व्रत कथा: प्राचीन काल में एक प्रतापी राजा था. वह दानवीर था. वह हर बृहस्पतिवार को व्रत रखता था और गरीबों को दान देता था. लेकिन राजा की रानी को यह बात पसंद नहीं थी. वह न तो व्रत करती थी और ना ही दान करने देती थी. एक दिन राजा शिकार करने जंगल निकला. रानी अपनी दासी के साथ घर पर ही थीं. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए. लेकिन रानी ने साधु को भिक्षा देने की बजाय टालती रही. साधु ने दोबारा भिक्षा मांगी. रानी ने फिर काम बताकर कहा कि कुछ देर बाद आना. साधु ने कुछ देर बाद फिर भिक्षा मांगी. इस पर रानी नाराज हो गई और कहा कि मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मुझे इस कष्ट से मुक्ति मिल जाए. बृहस्पतिदेव ने कहा कि अग...