शाहीपुर की नौटंकी

  1. नौटंकी की ‘गुलाब बाई’ जिन्होंने अपनी कला के ज़रिये दी थी पितृसत्ता को चुनौती
  2. हाथरस के कलाकारों ने नौटंकी शहजादी की कथा सुनाई, बीकानेर के लोगों ने अंगीकार किया, आज शहर की प्रसिद्ध रम्मतों में शुमार
  3. उत्तर भारत में बॉलीवुड से पहले 'नौटंकी' ही मनोरंजन का बड़ा माध्यम था जो अब अपनी विरासत खो रहा है


Download: शाहीपुर की नौटंकी
Size: 13.26 MB

नौटंकी की ‘गुलाब बाई’ जिन्होंने अपनी कला के ज़रिये दी थी पितृसत्ता को चुनौती

नौटंकी की पहली महिला कलाकार हैं गुलाब बाई। नौटंकी में पहली स्त्री कलाकार, गुलाब बाई को शामिल करने का श्रेय तिरमोहन उस्ताद को जाता है, उन्हीं के प्रयास से कानपुर स्कूल की नौटंकी में गुलाब बाई शामिल हुईं। हमारे समाज की ही तरह संपूर्ण मनोरंजन भी पुरुष प्रधान रहा है और इस पुरुष प्रधान मनोरंजन में गुलाब बाई ने अपने ऐसे कदम जमाए कि उन्हें नौटंकी की 'महारानी', 'पटरानी' और 'मलिका' कहा जाने लगा। अल्प आय, गरीब-पिछड़े लोगों के लिए लोक कला का बहुत बड़ा महत्व रहा है। ‘लोक’ यानी सामान्य जनता, लोक कला यानी वह कला जो सामन्य जनता की हो। लोक कलाएं अधिकांशतः इस वर्ग के मनोरंजन का साधन रही हैं जो उच्च वर्ग के मंहगे शौक आदि चीजें नहीं कर सकते थे। ऐसी ही लोक कलाओं में ‘नाटक’ बहुत चर्चित और मनोरंजक कला रही है जिसका आज आधुनिक रूप हम रंगमंच के ज़रिए देखते हैं। इन लोक नाटकों की एक खासियत थी कि आज के रंगमंच की तरह कोई दूसरा व्यक्ति हस्तलिपि ( स्क्रिप्ट) नहीं लिखता था बल्कि इसमें कलाकार अपने खुद के लिखे हुए संवाद बोलता था। मगर अपवाद हर कला, क्षेत्र में होते हैं ऐसे ही दो अपवाद, दो नाटकों में देखने को मिलते हैं जो लिखित रूप में भी हमारे सामने मौजूद हैं और वे ‘लोक नाटक’ भी हैं। भिखारी ठाकुर के ‘बिदेसिया शैली’ वाले नाटक और ‘नौटंकी’। नौटंकी के दो घराने- कानपुर और हाथरस नौटंकी को भले ही आज अश्लील और फूहड़-नाच गाने से भरपूर कर दिया हो लेकिन नौटंकी उत्तर भारत की एक सुप्रसिद्ध लोकनाट्य विधा है। एक वक़्त था जब बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक नौटंकी खेली जाती थी। पुत्र-जन्म, विवाह और अलग-अलग अवसरों पर नौटंकी की मंडलियों को ख़ासतौर पर बुलाया जाता था। आमतौर पर किसी भी लोकनाट्य की शैली को स्कूल की संज्ञा नहीं दी जा...

हाथरस के कलाकारों ने नौटंकी शहजादी की कथा सुनाई, बीकानेर के लोगों ने अंगीकार किया, आज शहर की प्रसिद्ध रम्मतों में शुमार

बिस्सों के चौक में पिछले 275 वर्षों से भी अधिक समय से नौटंकी शहजादी रम्मत का मंचन किया जा रहा है। इस रम्मत का कहीं भी कोई लिखित इतिहास नहीं है। रम्मत से जुड़े बिस्सा परिवार के लोग एक-दूसरे को इसकी मौखिक जानकारी देते आए हैं। बीकानेर में नौटंकी शहजादी की रम्मत शुरू होने का सिलसिला काफी दिलचस्प है। करीब 275 साल पहले होली के अवसर पर हाथरस से वहां के कलाकार आए। उन्होंने बीकानेर में हो रही स्वांग म्हेरी कर रम्मते देखी। इसके बाद अपने यहां चल रहे नौटंकी शहजादी के बारे में अपनी भाषा में हीरालाल बिस्सा को सुनाया। हीरालाल बिस्सा ने उनकी कहानी सुनकर उन्हें एक दिन बाद आने को कहा। एक दिन बाद जब हाथरस के कलाकार उनके चौक पहुंचे तो उन्होंने इसकी राग-रागिनी ही बदल दी। उसे सुनकर वे भाव-विभोर हो गए। उन्होंने हीरालाल बिस्सा को उपहार में अपने साथ लाए गए नगाड़ा व बाजा दिया। तभी से यह रम्मत बिस्सों के चौक में शुरू हुई और ढोल-नगाड़ों व बाजाें की ताल पर हजारों लोग इसका आनंद ले रहे हैं। सुनारों की गुवाड़ में हादसे के बाद रम्मत पर लगा दी थी महाराजा गंगासिंह ने रोक : कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं कि बाद में यह रम्मत सुनारों के मोहल्ले में भी होने लगी। वहां रम्मत देख रही महिला छत से नीचे गिरकर मर गई। इस पर महाराजा गंगासिंह ने शहजादी नौटंकी के मंचन पर रोक लगा दी थी। कई साल यह बंद रही। बाद में बिस्सों के चौक रम्मत शुरू हुई। पंजाब राज परिवार के राजकुमार व मुल्तान की शहजादी के बीच का है वृतांत यह रम्मत पंजाब के राजपरिवार के देवर फूलसिंह (पंजाबी) व डसकी भाभी के बीच हुई मसखरी से शुरू होती है। इसमें भाभी देवर के नखरों से परेशा होकर कहती है कि इतने रखते हैं तो मुल्तान की शहजादी को अपनी पत्नी बना लाओ। उसके सामने ही सा...

उत्तर भारत में बॉलीवुड से पहले 'नौटंकी' ही मनोरंजन का बड़ा माध्यम था जो अब अपनी विरासत खो रहा है

नौटंकी (Nautanki) कला नृत्य, संगीत, कहानी, हास्य, संवाद, नाटक और बुद्धि का मिश्रण है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में 'नौटंकी' (Nautanki) ही सबसे लोकप्रिय कला थी। आज के सिनेमा को नाट्य कला (theatrical art) के नगीने देने में 'नौटंकी' (Nautanki) की विशेष भूमिका रही है। बहुत कम प्रॉप्स का उपयोग होने के बावजूद, अभिनेता अपनी विलक्षण प्रतिभा से नदियों, जंगलों, युद्धों और शाही दरबारों का निर्माण किया करते थे। प्रदर्शन खुले मैदान में, मेक-शिफ्ट मंच पर आयोजित किए जाते थे, और जैसे ही अभिनेता अपनी वेशभूषा में सजते थे और शो शुरू होता था, वैसे ही सभी आयु वर्ग के लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। नौटंकी (Nautanki) ने मनोरंजन के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य किया, साथ ही अपने किस्सों और कहानियों के भीतर नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों को स्थापित किया और कुछ कारणों के लिए प्रासंगिक संदेश दिया। उत्तर भारत में, नौटंकी (Nautanki) ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान एक सुधारवादी भूमिका निभाई। यह अपने-अपने पूरे अवध में देशभक्ति और पराक्रम की कथाओं वाले नाटकों का अभिनय करके नौटंकी कला ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक अभूतपूर्व योगदान दिया। नौटंकी (Nautanki) का असर लोगों पर ऐसा था कि जब लैला मजनू की प्रेमकहानी में पागल होने के बाद पहली बार मजनू लैला से मिला तो थिएटर में चीख-पुकार मच गई। जब फरहाद शिरीन फरहाद में शिरीन की कब्र पर अपना सिर पीटता, या जब सुल्ताना सुल्ताना डाकू में ब्रिटिश पुलिस आयुक्त को चकित करती, तो दर्शकों में एक बहुत मजबूत भावना पैदा होती थी। ऐसे हर पल में अभिनेता और दर्शक एक हो जाते थे और बीच की अंतर की दीवार टूट जाती थी। नौटंकी (Nautanki) की कला ने भारतीय सिनेमा को अनेक नगीनों से नवाज़ा है। संगीत,...