मौलिक अधिकार को परिभाषित करें

  1. मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में अंतर
  2. Fundamental Rights: मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 12
  3. मौलिक अधिकार (भाग
  4. मौलिक अधिकार
  5. मौलिक अधिकार
  6. मौलिक अधिकार क्या हैं


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मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में अंतर

मौलिक अधिकार और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत भारतीय संविधान के आवश्यक तत्व हैं और राज्य और उसके नागरिकों दोनों के समग्र विकास को सक्षम करने के लिए लागू किए गए हैं।संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकार प्रत्येक नागरिक को सबसे बुनियादी निहित अधिकारों की गारंटी देने का प्रयास करते हैं, जबकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत ऐसे निर्देश देते हैं जो कल्याणकारी राज्य बनाने में मदद करने के लिए अपने कानूनों और नीतियों को तैयार करते समय राज्य का मार्गदर्शन करना चाहिए। .ये दोनों अवधारणाएं संवैधानिक संरचना में अभिन्न भूमिका निभाती हैं, लेकिन एक दूसरे से बहुत अलग हैं जैसा कि यहां नीचे बताया गया है। अपनी कानूनी समस्या के लिए वकील से बात करें मौलिक अधिकार मौलिक अधिकार मूल अधिकारों और स्वतंत्रताओं का एक समूह है जिसे राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए पवित्र माना गया है और भारतीय संविधान में निहित है।इन अधिकारों की गारंटी पूरे राष्ट्र और उसके नागरिकों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए दी गई है।भारतीय संविधान का भाग III राज्य द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को निर्धारित करता है और इस हिस्से को इस हद तक पवित्र माना जाता है कि राज्य को भी इन अधिकारों पर थोपने से रोका जाता है, सिवाय इसके कि इस भाग में प्रदान किए गए तरीके को छोड़कर। जाति, पंथ, लिंग, लिंग, धर्म, नस्ल आदि के बावजूद बिना किसी अपवाद के प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की गारंटी दी जाती है। इस प्रकार प्रत्येक नागरिक को कानून की अदालत में जाने का अधिकार है यदि उसके मौलिक अधिकार हैं। वर्तमान में भारतीय निर्माण निम्नलिखित मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है: • समानता का अधिकार - यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि कानून की नजर में ...

Fundamental Rights: मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 12

आज इस लेख में हम आप को Fundamental Rights के बारे में बताएंगे। Fundamental Rights को हिंदी में मौलिक अधिकार कहते हैं। भारत देश के सभी नागरिकों को हमारे देश के संविधान द्वारा कुछ मूल अधिकार प्रदान किये गए हैं। और आप भी इस बारे में जरूर जानते होंगे। यदि आप को इन सभी मौलिक अधिकारों की पूरी जानकारी नहीं भी है तो भी आप को परेशान होने की जरुरत नहीं है। हम आप को सभी नागरिकों के मौलिक मूल अधिकारों के बारे में आज आप इस लेख के माध्यम से विस्तार से जानकारी देंगे। इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए आप इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें। 3 मौलिक अधिकारों से सम्बंधित प्रश्न उत्तर यहाँ जानिए क्या होते हैं मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) भारतीय संविधान (Indian Constitution) के भाग तीन (Indian Constitution part III) के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अदिकार प्रदान किये गए हैं। इन मौलिक अधिकारों को प्रदान करने का उद्देश्य नागरिकों के सम्पूर्ण विकास (नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से) को बढ़ावा देना है। ये अधिकार सरकार या किसी के भी द्वारा सामान्य परिस्थितियों में सीमित नहीं किये जा सकते। यदि कभी ऐसा होता है या प्रयास किया जाता है तो इसके लिए संबंधित नागरिक सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि नागरिकों के फंडामेंटल राइट्स यानी मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। आप की जानकारी के लिए बता दें की हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकारों को (Fundamental Rights)को संयुक्त राज्य अमेरिका के बिल ऑफ राइट्स से लिया गया है। मौलिक अधिकारों को मूल अधिकार की संज्ञा दी गयी है न कि कानूनी अधिकार की। ऐसा इसलिए कहते हैं क्यूंकि मूल अधिकार को हमसे न ही सरकार ...

मौलिक अधिकार (भाग

टैग्स: • • परिचय मौलिक अधिकारों के बारे में: • संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है। • संविधान के भाग III को ‘ भारत का मैग्नाकार्टा ’ की संज्ञा दी गई है। • ‘मैग्नाकार्टा' अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था। • मौलिक अधिकार: भारत का संविधान छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है: • समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) • स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) • शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24) • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28) • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30) • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) • मूलतः संविधान में संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी शामिल था। हालाँकि इसे 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। • इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है। • मौलिक अधिकारों से असंगत विधियाँ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि मौलिक अधिकारों से असंग त या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ शून्य होंगी। • यह शक्ति सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) और उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226) को प्राप्त है। • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर संवैधानिक संशोधन को चुनौती दी जा सकती है। • रिट क्षेत्राधिकार: यह न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक कानूनी आदेश है। • सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते ...

मौलिक अधिकार

4.3/5 - (9 votes) किसी भी लोकतंत्र में आम नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार (Fundamental Rights In Hindi) होना सच्चे लोकतंत्र का उदाहरण होता है | आज कि इस पोस्ट में भारतीय संविधान में उल्लेखित सभी मौलिक अधिकारों की पूरी जानकारी आपको देने वाले हैं | भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है | अगर आप किसी भी परीक्षा को देने वाले हैं, तो इस पोस्ट को पूरा ध्यान से जरूर से पढ़िए | यह बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है यहां से किसी भी परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते है | महत्वपूर्ण बिंदु - • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • मौलिक अधिकार क्या है (What Is Fundamental Rights)? आम नागरिकों को अपना जीवन सामान्य तरीके से जीने के लिए उनके पास मूलभूत अधिकार होते हैं, जिन्हें मौलिक अधिकार(Maulik Adhikar) कहते हैं;जैसे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार | यह सभी अधिकार किसी भी व्यक्ति को मूल रूप से मिलने चाहिए, इसीलिए ने मौलिक अधिकार कहते हैं | • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का प्रावधान संविधान के भाग 3 में किया गया है | • संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक विभिन्न छह मौलिक अधिकारों का उल्लेख(maulik adhikaro ka pravdhan) किया गया है | • मौलिक अधिकारों का प्रावधान संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है | • संविधान के भाग 3 को जिसमें मौलिक अधिकारों का उल्लेख संविधान का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है | • मूल रूप से जब संविधान बनकर तैयार हुआ उस समय भारतीय संविधान में 7 मूल अधिकार थे, लेकिन 44 वें संविधान संशोधन,1978 के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा दिया गया | • अभी भारतीय संविधा...

मौलिक अधिकार

Please enable JavaScript भाग -3 मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक) (अमेरिका से लिये) मौलिक अधिकारों से तात्पर्य वे अधिकार जो व्यक्तियों के सर्वागिण विकास के लिए आवश्यक होते है इन्हें राज्य या समाज द्वारा प्रदान किया जाता है।तथा इनके संरक्षण कि व्यवस्था की जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को वैश्विक मानवाधिकारो की घोषणा की गई इसलिए प्रत्येक 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकारों का वर्णन दिया गया था। समानता का अधिकारा - अनुच्छेद 14 से 18 तक स्वतंन्त्रता का अधिकार - अनुच्छेद 19 से 22 तक शोषण के विरूद्ध अधिकार - अनुच्छेद 23 व 24 धार्मिक स्वतंन्त्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28 तक शिक्षा एवम् संस्कृति का अधिकार - अनुच्छेद 29 और 30 सम्पति का अधिकार - अनुच्छेद 31 सवैधानिक उपचारो का अधिकार - अनुच्छेद 32 अनुच्छेद - 12 राज्य की परिभाषा अनुच्छेद - 13 राज्य मौलिक अधिकारों का न्युन(अतिक्रमण) करने विधियों को नहीं बनाऐंगा। 44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा "सम्पति के मौलिक अधिकार" को इस श्रेणी से हटाकर "सामान्य विधिक अधिकार" बनाकर 'अनुच्छेद 300(क)' में जोड़ा गया है। वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है। समानता का अधिकार- अनच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 अनुच्छेद - 14 विधी कके समक्ष समानता ब्रिटेन से तथा विधि का समान सरंक्षण अमेरिका से लिया अनुच्छेद - 15 राज्य जाती धर्म लिंग वर्ण, आयु और निवास स्थान के समक्ष भेदभाव नहीं करेगा। राज्य सर्वाजनिक स्थलों पर प्रवेश से पाबन्दियां नहीं लगायेगा। अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत राज्य महीलाओं और बालकों को विशेष सुविधा उपलब्ध करवा सकता है। अनुच्छेद - 16 लोक नियोजन में अवसर की सम...

मौलिक अधिकार क्या हैं

मौलिक अधिकारों का अर्थ मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:- 1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता। 2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा। 3. इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता। 4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है। साधारण कानूनी अधिकारों व मौलिक अधिकारों में अंतर साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता है तथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है। साधारण कानूनी अधिकारों में विधानमंडल द्वारा परिवर्तन किये जा सकते हैं परंतु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने के लिये संविधान में परिवर्तन आवश्यक हैं। मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 क संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में...