कान के झाले की नई डिजाइन

  1. पतंजलि कान की दवा (दिव्य सरीवादी वटी) के फायदे और जानकारी
  2. खूबसूरत फर्नीचर के विचार और डिजाइन
  3. Ruptured Eardrum: कान के पर्दे में छेद क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
  4. कान
  5. कान बहने की समस्या को घरेलू उपचार से करें दूर
  6. कान बहना की समस्या से हैं परेशान, तो अपनाएं ये घरेलू उपचार
  7. बी. वी. दोशी
  8. कान की वैज्ञानिक देखभाल


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पतंजलि कान की दवा (दिव्य सरीवादी वटी) के फायदे और जानकारी

नमस्कार मित्रों, कान हमारे शरीर का बहुत ही एसेंशियल हिस्सा है। इसके होने से ही हम दुनिया को सुन पाते हैं म्यूजिक को समझ पाते हैं, अच्छे अच्छे लेक्चर सुन पाते हैं और ढेर सारे एक्शन हम कानों की सहायता से लेते रहते हैं।कान का हमारे लाइफस्टाइल में बहुत ही इंपोर्टेंट योगदान होता है। इसलिए हमे कान का ध्यान जरूर रखना चाहिए। कान को आजीवन स्वस्थ रखने के लिए हमे इस पर प्रॉपर ध्यान देना चाहिए। जैसे अगर कान में छोटी मोटी दिक्कत होती है तो हमे इसे नजरअंदाज नही करना है बल्कि इस समस्या को वहीं पर खत्म कर देना है। और पढ़े: अगर आपको पहले ही कान में कोई दिक्कत है तो आपको इस आर्टिकल में बहुत ही काम की जानकारी मिलेगी और साथ ही हम पतंजलि कान की दवा का रिव्यु करेंगे जो आपके लिए लाभदायक हो सकती है। पतंजलि कान की दवा के नियमित इस्तेमाल से आपके कान की प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती है। इस दवा के फायदे और नुकसान आगे बताए गए हैं। आर्टिकल का कंटेंट – • कान से जुड़े मुख्य रोग • दिव्य सरीवादी वटी का रिव्यु और पढ़े: पतंजलि कान की दवा, दिव्य सरीवादी वटी का रिव्यु अगर आपके कानों में आवाजें आती हैं, कम सुनाई देता है या कानों से पानी निकलता है और आप उसे ठीक करना चाहते हैं। और साथ में यह भी चाहते हैं कि दवाई आयुर्वेदिक हो तो आप पतंजलि कान की दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके फायदे और कमियां नीचे बताए गए हैं। फायदे • इसमें मौजूद है दालचीनी, गिलोय, तेजपत्र, मुलेठी, इलाइची, अभ्रक भस्म, कमल के फूल और ऐसे ही कई अन्य जड़ीबूटियां जो आपके कान को भरपूर पोषण देने का काम करती हैं। • टिनिटस ( कान में आवाज सुनाई पड़ना ) के मरीजों के लिए यह दवा काफी अच्छी और असरदार है। • बात करें इसके अंदर के कंटेंट की तो इसमें आपको 160 टैबलेट मि...

खूबसूरत फर्नीचर के विचार और डिजाइन

यह लकड़ी के पैनल का विभाजन इस घर के दो वातावरणों को अलग करने की अनुमति देता है जो एक सजीले फ्लैट स्क्रीन के प्रदर्शन करने के लिए भी एक आदर्श आधार बना है । बैठक के हिस्से में कमरे के अंदर एक मनोरंजन केंद्र है और उसे की उलटे तरफ जो आकर्षक खुले अलमारी में बड़ा दराज है वो सभी ज़रूरी वस्तुओ उत्कृष्ट रूप से संगठित करने की अनुमति देता है।

Ruptured Eardrum: कान के पर्दे में छेद क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

कान के पर्दे में छेद को टायम्पेनिक मेम्ब्रेन परफोरेशन (tympanic membrane perforation) के नाम से भी जाना जाता है। यह कान के पर्दे की झिल्ली में एक छेद होता है। ईयर कैनाल को मध्य कान (कान का पर्दा) से अलग करने वाले पतले ऊत्तकों में चोट पहुंचती है। इसे कान के पर्दे में छेद के नाम से जाना जाता है। कान के पर्दे में छेद होने से बहरापन आ सकता है। कान के पर्दे में छेद होने से आपके मिडिल ईयर में इंफेक्शन या चोट लगने की संभावना ज्यादा होती है। कान के पर्दे में छेद आमतौर पर बिना इलाज के कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है। हालांकि, कई बार कान के पर्दे में छेद होने पर इलाज या सर्जरी के माध्यम से इसका इलाज करने की आवश्यकता पड़ती है। और पढ़ेंः कान के पर्दे में छेद होना कितना सामान्य है? कान के पर्दे में छेद एक सामान्य समस्या है। किसी भी व्यक्ति के कान के पर्दे में छेद हो सकता है। हालांकि, इसके कारणों में विभिन्नत्ता हो सकती है। कई मामलों में यह आंशिक या पूर्णतः लक्षण कान के पर्दे में छेद के क्या लक्षण हैं? कान के पर्दे में छेद के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं: • • • कान से साफ, पस या खून जैसा डिस्चार्ज • बहरापन • मतिभ्रम • उबकाई या मुझे डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए? यदि आपको उपरोक्त लक्षणों या कान के पर्दे में छेद के संकेतों का अनुभव होता है या आपको दर्द या कान में असहजता का अहसास होता है तो डॉक्टर से संपर्क करें। आपके कान का मध्य हिस्सा काफी संवेदनशील होता है, जो चोट या बीमारियों के प्रति काफी संवेदनशील होता है। सुनने की क्षमता को बचाए रखने के लिए कान के पर्दे में छेद का तत्काल और उचित इलाज काफी आवश्यक है। कारण कान के पर्दे में छेद के क्या कारण हैं? कान के पर्दे में छेद के कारण निम्नलिखित हैं: •...

कान

मानव बाह्यकर्ण मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक के रूप में कार्य करता है, अपितु शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है। "कान" शब्द को पूर्ण अंग या केवल दृश्यमान भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अधिकतर प्राणियों में, कान का जो हिस्सा दिखाई देता है वह ऊतकों से निर्मित एक प्रालंब होता है जिसे बाह्यकर्ण या कर्णपाली कहा जाता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो मे से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और शरीर को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नहीं निभाता। कशेरुकी प्राणियों मे कान जोड़े मे सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते हैं। यह व्यवस्था ध्वनि स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है। कर्ण मानव जीवन मे अत्यन्त महत्वपूर्ण भुमिका निभाता हैं यह हमे श्रवन के साथ साथ हमारे शरीर को संतुलित भी बनाए रखता हैं साथ ही यह हमारे संवेदनशील अंग का मुख्य हिस्सा भी होता हैं कर्ण हमे तरह तरह की ध्वनी को पहचानने मे भी सहायक हैं भाग [ ] मानव कान के तीन भाग होते हैं- • बाह्य कर्ण • मध्य कर्ण • आंतरिक कर्ण अब जन्म से बहरे बच्चों का भी काॅक्लियर इम्पलांट सर्जरी के माधयम से आॅपरेशन करके उन्हें ठीक किया जा सकता है और बे बच्चे भी सुन सकते हैं और बोल भी सकते हैं बाहरी कान कीप या कर्णपाली से आवाज़ की तरंगें इकट्ठी करके कान के पर्दे तक पहुँचाती है। इससे कान के पर्दे में कम्पन होता है। ...

कान बहने की समस्या को घरेलू उपचार से करें दूर

जब किसी व्यक्ति के कान से तरल पदार्थ निकलता है, तो उसे कान बहना या ओटेारिया कहा जाता है। वैसे तो यह समस्या छोटे शिशुओं व बच्चों में अधिक देखने को मिलती है, लेकिन किसी भी उम्र का व्यक्ति इससे प्रभावित हो सकता है। ज्यादातर कान से बहने वाला पदार्थ ईयरवैक्स होता है। यह एक तरल पदार्थ होता है जो शरीर में स्वाभाविक रूप से पैदा होता है। वहीं कई बार कान से ब्लड, पस या अन्य प्रकार का द्रव भी निकलता है। जो बताता है कि आपका ईयरडम चोटिल है या कान में इंफेक्शन हो गया है। इस स्थिति में चिकित्सीय देखभाल जरूरी है। वहीं अगर आपके कान से बहने वाला पदार्थ रक्त या पस नहीं है तो आप घरेलू उपचार की मदद से भी कान बहने की समस्या को खत्म कर सकते हैं− सेब का सिरका सेब के सिरके में एंटी−माइक्रोबायल प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं, जो कान में संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणुओं को मारने में मदद करते हैं। इसके इस्तेमाल के लिए एक चम्मच सेब का सिरका लेकर उसमें एक चम्मच गर्म पानी मिलाएं। अब एक रूई के फाहे को इस मिश्रण में भिगोएं और अपने कानों में इसे रखें। ठीक उसी तरह, जिस तरह हम फोन की लीड को कान में लगाते हैं। अब आप लेट जाएं ताकि कॉटन बॉल में मौजूद मिश्रण आपके कान में चला जाए। अब कॉटन को हटाए और कान को सूखने दें। नीम का तेल नीम के तेल में एंटी−बैक्टीरियल, एंटी वायरल और एंटी−फंगल प्रॉपर्टीज होती हैं। यह प्रापर्टीज कानों में होने वाले इंफेक्शन व दर्द को दूर करने में सहायक है। इसके इस्तेमाल के लिए नीम के तेल की कुछ बूंदे प्रभावित कान में डालें। अब अपने कान को रूई की मदद से कवर करें और कुछ देर के लिए ऐसे ही रहें। इसके बाद आप रूई को कान से निकाल सकते हैं। भाप गर्म कपड़े से कानों में ली गई भाप उसे मॉइश्चर प्रदान करती है और...

कान बहना की समस्या से हैं परेशान, तो अपनाएं ये घरेलू उपचार

हम इस आर्टिकल में कान बहने की समस्या को ठीक करने या उससे राहत पाने के लिए कुछ घरेलू उपायों के बारे में बता रहे हैं, लेकिन अगर इन उपायों को अपनाने से भी समस्या में राहत नहीं मिलती या और ज्यादा परेशानी होने लगती है, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना उचित रहेगा। और पढ़ेंः कान बहना यह समस्या क्यों होती है? Ear Drainage- कान बहना कान बहना यानी कान से किसी भी तरह या रंग का तरल पदार्थ निकलना होता है। यह तरल पदार्थ मवाद या पस होने पर कान बहना कान से मवाद या पस निकलने की समस्या ईयर कैनाल या मिडिल ईयर में इंफेक्शन का संकेत हो सकता है। सर्दी, और पढ़ेंः कान बहने की समस्या से राहत पाने के घरेलू उपाय कान बहना रोकने के लिए नीम ऑइल नीम ऑइल में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फंगल गुण होते हैं। जिस वजह से यह हर प्रकार के इंफेक्शन को ठीक करने के लिए काफी असरदार चीज है। नीम ऑइल में इन गुणों के होने की वजह से यह कान में दर्द और संक्रमण पैदा करने वाले पैथोजेन को नष्ट करने में काफी मदद करता है। इसके लिए आपको सेब का सिरका वार्म कंप्रेस कान में ईयरवैक्स की वजह से कान बहना की समस्या हो सकती है और इसके साथ ही कान बंद की दिक्कत का भी सामना करना पड़ सकता है। इन दिक्कतों से राहत पाने के लिए आप वार्म कंप्रेस की मदद ले सकते हैं। इस उपाय को करने के लिए आपको एक बर्तन में गर्म पानी लेना होगा। अब किसी कपड़े या तौलिये को उस पानी में अच्छी तरह भिगो लें। अब तौलिए या कपड़े को निचोड़कर अतिरिक्त पानी निकाल लें और उसे संक्रमित कान के ऊपर रखें। आप इस उपाय को तब तक दोहरा सकते हैं, जब तक कि तकलीफ कम नहीं हो जाती है।

बी. वी. दोशी

बी. वी. दोशी दोशी 2013 में व्यक्तिगत जानकारी नाम बी. वी. दोशी राष्ट्रीयता भारतीय जन्म तिथि 26 अगस्त 1927 जन्म स्थान मृत्यु तिथि 24 जनवरी 2023 ( 2023-01-24) (उम्र95) मृत्यु स्थान शिक्षण संस्थान कार्य उल्लेखनीय इमारतें सम्मान एवं पुरस्कार बालकृष्ण विट्ठलदास दोशी (गुजराती: બાલકૃષ્ણ વિઠ્ઠલદાસ દોશી; 26 अगस्त 1927 - 24 जनवरी 2023) एक भारतीय वास्तुकार थे। उनके उल्लेखनीय डिजाइनों में उनका स्टूडियो, वास्तु-शिल्पा (पर्यावरण डिजाइन), 1955 में स्थापित किया गया था। दोशी ने लुइस कान और बीमानगर [ ] अहमदाबाद में स्थित बीमानगर हाउसिंग सोसाइटी, श्री बी.वी. दोशी की प्रसिद्ध परियोजनाओं में से एक है। उन्होंने एक बार कहा था, "मेरी सबसे पसंदीदा आवास परियोजनाओं में से एक वह है जिसे मैंने अहमदाबाद में जीवन बीमा निगम के लिए डिजाइन किया था। यहां मुझे पता था कि घरों में एक ही परिवार की कई पीढ़ियों का कब्जा होगा, कि वे इसके साथ पहचान करेंगे, कि अपनेपन की एक मजबूत भावना होगी और उनकी ज़रूरतें बदल जाएंगी, और वे इसके कुछ हिस्सों को संशोधित कर सकते हैं। अध्यापन [ ] एक वास्तुकार के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के अलावा, दोशी समान रूप से एक शिक्षक और संस्था निर्माता होने के लिए भी जाने जाते हैं। वह स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, अहमदाबाद (1962-72) के संस्थापक निदेशक थे, स्कूल ऑफ प्लानिंग (1972-79) के संस्थापक निदेशक, दोशी ने पर्यावरण डिजाइन में अध्ययन और अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध शोध संस्थान वास्तु-शिल्पा फाउंडेशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सन्दर्भ [ ] • • Ashish Nangia (12 February 2006). . अभिगमन तिथि 12 जून 2023. सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown ...

कान की वैज्ञानिक देखभाल

7 उपसंहार : कान की देखभाल के लिए कुछ जरूरी टिप्स : कहते हैं बड़े कान पुरुषों के लिये भाग्यशाली होते हैं और छोटे कान स्त्रियों की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं। पशुओं की खोपड़ी के बाहरी बाजू के स्नायु ऐच्छिक होने के कारण उनके कानों में एक विशेषता यह होती है। कि पशु अपने कान जहाँ से आवाज आती है, उस दिशामें मोड़ लेते हैं, परंतु मनुष्य के स्नायु अनैच्छिक होने के कारण बाहरी कान का उपयोग आवाज की लहरों को एकत्र कर उन्हें कर्णनलिका (आडीटरी)-की ओर भेजने में ही होता है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियोंमें से कान भी एक कोमल इन्द्रिय है, इसलिये इसकी विशेष सावधानी से रक्षा करनी चाहिये। कान से खिलवाड़ नहीं करना चाहिये अन्यथा यह छेड़-छाड़ जीवनभर के लिये बहरा बना सकती है। जिसे हम कान कहते हैं वह तो केवल सुनने वाले यन्त्रका बाहरी भाग है। इसमें कई पर्त और घुमाव होते हैं। बाहरी कान से एक नली अंदर (मध्य कान में) जाती है। हो सकता है इसी मार्ग से दिनभर में अनेक प्रकार की गंदगी और हानिकारक कीटाणु जमा हो जायँ। यदि यह गंदगी (जिसे कानका मैल भी कहते हैं) निरन्तर कुछ दिनों तक जमा होती रहे और साफ न की जाय तो यह कड़ी होकर रोग बन जाती है, जिससे कान में दर्द, फुसियाँ, यहाँ तक कि बहरापन भी हो सकता है। कान की नली के अन्त में एक झिल्ली होती है जिसे कान का पर्दा कहते हैं। कनपटी पर जोर से तमाचा मारने पर्दे पर आघात पहुँचता है, क्योंकि यह झिल्ली बहुत ही कोमल होती है, अत: कान का मैल निकालने के लिये कान में पिन, पेंसिल या कोई नुकीली वस्तु कभी भी नहीं डालनी चाहिये। बल्कि, कान में कुछ दिनों तक सरसों, तिल्ली, नारियल या जैतून किसी भी उपलब्ध तेल की मामूली गर्म एक-एक बूंद डालने से कान का कड़ा मैल मुलायम पड़कर ऊपर आ जायग...