दीपावली का संधि विग्रह

  1. [Solved] "महत्त्व" का विग्रह
  2. यण संधि
  3. Deepawali 2021: दीपावली पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, जानें दीपों का पर्व मनाने की तारीख और शुभ मुहूर्त
  4. दीपावली (निबंध)
  5. दीपावली का इतिहास और महत्व – कीबोर्ड के पत्रकार
  6. संस्कृत: संधि परिभाषा,भेद और उदाहरण Sanskrit sandhi [Sanskrit Grammar]
  7. वयोवृद्ध का संधि विच्छेद


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[Solved] "महत्त्व" का विग्रह

'महत्त्व' का विग्रह है -महत् + त्व। अतः विकल्प 3 सही उत्तर है। Key Points • महत्व शब्द में व्यंजन संधि हुई है। • महत्व का अर्थ - महान होने की अवस्था या भाव।​ Additional Information संधि -दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं। संधि के तीन प्रकार हैं- 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग, संधि परिभाषा स्वर स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से विकार उत्पन्न होता है। जैसे - विद्या + अर्थी = विद्यार्थी; महा + ईश = महेश। व्यंजन एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है। जैसे - अहम् + कार = अहंकार; उत् + लास = उल्लास। विसर्ग विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से विकार उत्पन्न होता है। जैसे - दुः + आत्मा = दुरात्मा; निः + कपट = निष्कपट।

यण संधि

यण/यण् संधि अथवा यण स्वर संधि इको यणचि: यदि प्रथम शब्द के अन्त में इ, ई, उ, ऊ, ऋ हो और द्वितीय शब्द के प्रारम्भ में कोई असमान यानी इनसे भिन्न स्वर हो तो इ या ई का य्, उ या ऊ का व्, ऋ का र् हो जाता है। इस नियम से बने संधि को यण् अथवा यण संधि कहते हैं। जैसे- इ+अ = य, इ+आ = या, ई+अ = य, इ+उ = यु, इ+ऊ = यू, इ+ए = ये, इ+अं = यं, ई+उ = यु, ई+ऊ = यू, ई+ऐ = यै, ई+ओ = यो, ई+औ = यौ, ई+अं = यं, उ+अ = व, उ+आ = वा, ऋ+अ = र। उदहारण :- • यदि+अपि = यद्यपि (इ+अ = य) • परि+आप्त = पर्याप्त (इ+आ = या) • गोपी+अर्थ = गोप्यर्थ (ई+अ = य) • उपरि+उक्ति = उपर्युक्त (इ+उ = यु) • नि+ऊन = न्यून (इ+ऊ = यू) • प्रति+एक = प्रत्येक (इ+ए = ये) • अति+अन्त= अत्यन्त (इ+अं = यं) • देवी+उक्ति =देव्युक्ति (ई+उ = यु) • नदी+ऊर्मी = नद्यूर्मी (ई+ऊ = यू) • देवी+ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य (ई+ऐ = यै ) • देवी+ओज = देव्योज (ई+ओ = यो) • देवी+औदार्य = देव्यौदार्य (ई+औ =यौ) • देवी+अंग = देव्यंग (ई+अं = यं) • अनु+अय = अन्वय (उ+अ = व) • सु+आगत = स्वागत (उ+आ = वा) • पितृ+अंश = पित्रंश (ऋ+अ = र) • पितृ+आदेश = पित्रादेश (ऋ+आ = रा) ‘ ‘सन्धि’ शब्द की व्युत्पत्ति- सम् उपसर्ग पूर्वक ‘धा’ धातु (डुधाञ् धारणपोषणयोः) में ‘कि’ प्रत्यय लगकर ‘सन्धि’ शब्द निष्पन्न होता है, जिसका तात्पर्य होता है संधानं सन्धिः अर्थात् मेल, जोड़, संयोग आदि। व्याकरण के अनुसार ‘वर्णानां परस्परं विकृतिमत् संधानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णाक्षरों के मेल से उत्पन्न हुए विकार को ‘सन्धि’ कहते हैं। जैसे- सेवा+अर्थ = सेवार्थ। यहाँ ‘सेवार्थ’ में सेवा और अर्थ ये दो शब्द हैं जिसमें सेवा का अन्तिम अक्षर ‘आ’ है और अर्थ का प्रथम शब्द ‘अ’ है। आ और अ ये दो वर्ण नियमतः आपस में मिलकर ‘आ...

Deepawali 2021: दीपावली पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, जानें दीपों का पर्व मनाने की तारीख और शुभ मुहूर्त

Deepawali 2021: दीपावली पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, जानें दीपों का पर्व मनाने की तारीख और शुभ मुहूर्त | Deepawali 2021 know date of Deepawali 2021 festival vishesh sanyog and Maa Laxmi Puja Shubh Muhurat | Hindi News, धर्म Deepawali 2021: दीपावली पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, जानें दीपों का पर्व मनाने की तारीख और शुभ मुहूर्त नई दिल्‍ली: दशहरा पर रावण दहन करने के साथ ही दीपावली (Deepawali) का पर्व मनाने के लिए उल्‍टी गिनती शुरू हो जाती है. हिंदू पंचांग के मुताबिक दशहरा के ठीक 20 दिन बाद कार्तिक महीने की अमावस्‍या को दीपावली मनाई जाती है. इस साल दीपावली (Deepawali 2021) 4 नवंबर 2021, गरुवार को है. हालांकि यह पांच दिवसीय त्‍योहार 2 नवंबर को धन तेरस के साथ शुरू हो जाएगा. इस साल दीपावली पर ग्रह-नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग बन रहा है. इस साल की दीपावली बेहद खास होने वाली है क्‍योंकि इस दिन 4 ग्रह एक ही राशि में रहेंगे और ऐसा संयोग दुर्लभ ही बनता है. दीपावली के दिन सूर्य, बुध, मंगल और चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे. चूंकि तुला राशि के स्‍वामी शुक्र ग्रह हैं और वे भौतिक सुख-सुविधाओं के कारक हैं. ऐसे में यह दुर्लभ संयोग लोगों पर मां लक्ष्‍मी की जमकर कृपा बरसाएगा. वहीं कुछ राशियों के जातकों के लिए तो यह संयोग किस्‍मत बदलने वाला साबित होगा. यह भी पढ़ें: लक्ष्‍मी पूजा का शुभ मुहूर्त 5 दिवसीय पर्व के तीसरे दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है. इसे दीपावली की पूजा कहते हैं. इस साल कार्तिक महीने की अमावस्‍या 4 नवंबर 2021 को सुबह 06:03 बजे से 5 नवंबर 2021 को सुबह 02:44 तक रहेगी. वहीं धन की देवी लक्ष्‍मी की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त (Laxmi Puja Shubh Muhurat) 4 नवंबर को शाम 06:09 से रात के 08:20 ...

दीपावली (निबंध)

दीपावली भारत के सबसे प्रमुख और बड़े त्योहारों में एक त्योहार है। यह त्यौहार भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह हिंदुओं का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस दीप जलाकर रोशनी की जाती है। यह हर्ष और उल्लास एवं खुशी का पर्व है। यह सुख समृद्धि के आगमन का पर्व है। इस दिन हिंदू धर्म के अनुयाई लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं, इससे घर में सुख-समृद्धि का आगमन हो। दीपावली का अर्थ है, दीप + आवली अर्थात दीपों की श्रंखला। चूँकि इस दीपों को श्रंखला (पंक्ति) में सजाकर जलाया जाता है इसलिये इस त्योहार को दीपावली या दीवाली कहते हैं। दीपावली कब मनाई जाती है? दीपावली का त्योहार हिदु पंचाग कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। मुख्य त्योहार इसी दिन मनाया जाता है। पाँच दिवसीय दीपावली कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि से आरंभ होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार पाँच दिवसीय त्यौहार है जो कि धनत्रयोदशी से आरंभ होकर भाईदूज तक सम्पन्न है। पहले दिन धनत्रयोदशी मनाई जाती है दूसरे दिन छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन मुख्य दिवाली अर्थात लक्ष्मी-गणेश पूजन, चौथे दिन गोवर्धन पूजा तथा पाँचवें दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। दीपावली की तैयारी दीपावली की तैयारी लोग काफी समय पहले से करने लगते हैं। दीपावली से पहले लोग अपने घरों की पूरी तरह साफ-सफाई करते हैं और घरों की पुताई-रंगाई पुताई करते हैं। इस तरह घर पूरी तरह साफ एवं चमकदार हो जाता है। दीपावली का त्यौहार स्वच्छता का भी प्रतीक है, क्योंकि इस कारण लोग अपने घरों को नए सिरे से स्वच्छ एवं सुंदर बनाते हैं। दीपावली क्यों मनाते हैं ? दीपावली से जुड़ी सबसे ...

दीपावली का इतिहास और महत्व – कीबोर्ड के पत्रकार

डॉ. संदीप कोहली… कीबोर्ड के पत्रकार दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधि से बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपों की पंक्ति। भारतवर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। दीपावली कैसे शुरु हुई , अलग-अलग मान्यताएं पौराणिक • भगवान राम का चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटना- त्रेतायुग में भगवान राम रावण को हराकर और चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या वापस लौटे तब अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए, यह थी भारतवर्ष की पहली दीपावली। * जिस दिन श्री राम अयोध्या लौटे , उस रात्रि कार्तिक मास की अमावस्या थी अर्थात आकाश में चाँद बिल्कुल नहीं दिखाई देता था। ऐसे माहौल में अयोध्यावासियों ने भगवान राम के स्वागत में पूरी अयोध्या को दीपों के प्रकाश से जगमग करके मानो धरती पर ही सितारों को उतार दिया। तभी से दीपावली का त्यौहार मनाने की परम्परा चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी दीपावली के दिन भगवान राम , लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ अपनी वनवास स्थली चित्रकूट में विचरण कर श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि दीपावली के दिन लाखों श्रद्धालु चित्रकूट में मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाकर कामद्गिरि की परिक्रमा करते हैं और दीप दान करते हैं। • कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर क...

संस्कृत: संधि परिभाषा,भेद और उदाहरण Sanskrit sandhi [Sanskrit Grammar]

व्यंजन सन्धि जब व्यञ्जन के सामने कोई व्यंजन अथवा स्वर आता है तब 'हल्' (व्यंजन) सन्धि होती है। व्यंजन संधि (हल् सन्धि) भी कहा जाता है व्यंजन सन्धि के नियम नियम (1) शचुत्व संधि (श्तोश्चुनाश्चु) यदि स् अथवा त वर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद या पहले श् अथवाच वर्ग (च, छ, ज, झ, अ) हो तो स् को श् तथा त वर्ग के अक्षरों का क्रमशः च वर्गीय अक्षर हो जाता है। व्यंजन सन्धि के उदाहरण सत् + चरित्रः = सच्चरित्रः सत् + चित् = सच्चित् रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति उत् + चारणम् = उच्चारणम् महान् + जयः = महाजय यज् + नः = यज्ञ (ज ञ झ) निस् + शब्द = निश्शब्द नियम (2) ष्टुत्व सन्धि (ष्ट्र नाष्टुः)- यदि स् अथवा त वर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद या पहले ष् अथवा ट वर्ग (ट, ठ, ड, ण) के अक्षर आवे तो स् का ष् त वर्ग , ट वर्ग में बदल जाता है व्यंजन सन्धि के उदाहरण धनुष + टंकार – धनुष्टंकार उद् + डयनम् = उड्डयनम् तत् + टीका– तट्टीका सत् + टीका– सट्टीका षष् + थः = षष्ट पेष् + ता= पेष्टा नियम (3) जस्तव सन्धि- श्पादान्त (झलां जशझशि)--यदि किसी भी वर्ग के प्रथम, द्वितीय अथवा चतुर्थ अक्षर के पश्चात् किसी भी वर्ग का तृतीय अक्षर हो जाता है। प्रथम भाग-यदि वर्गों के पथम अक्षर (क, च, ट, त, प) के बाद घाव य, र, ल, व्, ह्) को छोड़कर कोई भी स्वर या व्यंजन वर्ण आता है तो वह प्रथम अका त. प) अपने वर्ग का तीसरा अक्षर (ग. ज. ड, द, ब) हो जाता हो दिक् + गजः = (क् का तीसरा अक्षर ग् होने पर) दिग्गजः वाक् + दानम् = (क् का तीसरा अक्षर ग् होने पर) वाग्दानम् वाक् + ईशः = (क् का तीसरा अक्षर 'ग्' होने पर) वागीशः अच् + अन्तः = (च का तीसरा अक्षर ज् होने पर) अजन्तः षट् + आननः = (ट् का तीसरा अक्षर ड् होने पर) षडाननः द्वितीय भाग-यदि पद के मध्य मे...

वयोवृद्ध का संधि विच्छेद

वयोवृद्ध का संधि विच्छेद | Sandhi Vichchhed of Vayovriddh संधि का नाम संधि विच्छेद वयोवृद्ध वयः+वृद्ध Vayovriddha Vayah+Vriddha वयोवृद्ध में कौन-सी संधि है ? विसर्ग संधि Type of Sandhi Visarga Sandhi संधि बनाने के नियम संधि-नियम जैसे– अ+अ = आ, अ+आ = आ, आ+अ = आ, इ+इ = ई, इ+ई = ई, ई+इ = ई, ई+ई = ई, उ+उ =ऊ, उ+ऊ = ऊ, ऊ+उ = ऊ। अ+इ = ए, अ+ई = ए, आ+इ = ए, आ+ई = ए, अ+उ = ओ, अ+ऊ = ओ, आ+उ = औ, आ+ऊ = औ, अ+ऋ = अर्, आ+ऋ = अर् इ+अ = य, इ+आ = या, ई+अ = य, इ+उ = यु, इ+ऊ = यू, इ+ए = ये, इ+अं = यं, ई+उ = यु, ई+ऊ = यू, ई+ऐ = यै, ई+ओ = यो, ई+औ = यौ, ई+अं = यं, उ+अ = व, उ+आ = वा, ऋ+अ = र। अ+ए = ऐ, आ+ए = ऐ, अ+ऐ = ऐ, आ+ऐ = ऐ, अ+ओ = औ, अ+औ = औ, आ+ओ = औ, आ+औ = औ। (:) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ रहे और उसके बाद य, र , ल, व या ह रहे या फिर किसी भी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण आए तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है फिर यही उ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसंधि के माध्यम से ”ओ’ हो जाता है| इसे भी जानें ‘सन्धि’ शब्द की व्युत्पत्ति(निर्वचन) ‘सन्धि’ शब्द की व्युत्पत्ति- सम् उपसर्ग पूर्वक ‘धा’ धातु (डुधाञ् धारणपोषणयोः) में ‘कि’ प्रत्यय लगकर ‘सन्धि’ शब्द निष्पन्न होता है, जिसका तात्पर्य होता है संधानं सन्धिः अर्थात् मेल, जोड़, संयोग आदि। व्याकरण के अनुसार ‘वर्णानां परस्परं विकृतिमत् संधानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णाक्षरों के मेल से उत्पन्न हुए विकार को ‘सन्धि’ कहते हैं। जैसे- सेवा+अर्थ = सेवार्थ। यहाँ ‘सेवार्थ’ में सेवा और अर्थ ये दो शब्द हैं जिसमें सेवा का अन्तिम अक्षर ‘आ’ है और अर्थ का प्रथम शब्द ‘अ’ है। आ और अ ये दो वर्ण नियमतः आपस में मिलकर ‘आ’ बन जाता है। आ और अ वर्ण मिलकर बना ‘आ’ ही विकार कहलाता है। जैसे रमा+ईश =...